चरित्र के उत्तरकालीन लक्षण-स्वयं की पहचान की जाग्रति, स्वनिर्धारक बनना, व्यक्तित्व में मस्तिष्क का समेकन करना, स्वशासित, बौद्धिक चेतनायुक्त होना, आसपास के समूह की जानकारी होना, आत्महित की ओर से सामूहिक आवश्यकताओं की ओर रूपांतरित होना, व्यक्तित्व का प्रभावी होना तथा व्यक्तित्व नियंत्रण होना।